Population Improvement and Modes of Selection
UPDATED ON:- 01-01-2024
समष्टि सुधार (Population Improvement):-
• मेंडेलियन समष्टि (Mendelian Population):-
Dobzanski (1950) के अनुसार ऐसी पादप समष्टि जिसमें निम्न तीन गुण पाये जाते हैं, मेंडेलियन समष्टि कहलाती है।
(According to Dobzanski (1950), a plant population in which the following three properties are found is called Mendelian population.)
i. स्वतंत्र परपरागण (Open Cross Pollination)
ii. स्वतंत्र जीन आवागमन (Open Gene Flow)
iii. आकस्मिक संयुग्मन (Random Mating)
• पादप प्रजनन का मुख्य उद्देश्य पादप समष्टि में लाभदायक व अनुकूलित जीनों की आवृति को बढ़ाकर समष्टि सुधार करना है।
(The main objective of plant breeding is to improve the population by increasing the frequency of beneficial and adaptable genes in the plant population.)
• आनुवंशिक आधार (Genetic Basis):- समष्टि सुधार के लिए पहले पादप समष्टि में आनुवंशिक विविधता उत्पन्न की जाती है। यह परपरागण का प्राकृतिक परिणाम है। अब इस विविधतापूर्ण समष्टि में से उत्कृष्ट व एक समान पौधों का वरण किया जाता है। समष्टि सुधार योजी जीन प्रभाव के उपयोग पर निर्भर करता है। इनके सतत एकत्रीकरण से समष्टि में लगातार सुधार होता जाता है।
(Genetic diversity is first generated in the plant population for improvement. This is the natural result of cross pollination. Now superior and uniform plants are selected from this diverse population. Population improvement depends on the use of the additive gene effect. Their continuous accumulation leads to continuous improvement in the population.)
• समष्टि सुधार को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Population Improvement):- पादप समष्टि सुधार निम्न कारकों पर निर्भर करता है –
(Plant population improvement depends on the following factors -)
1. कार्यात्मक सरलता (Functional Simplicity):- संकर प्रजनन की अपेक्षा समष्टि सुधार की प्रक्रिया अधिक सरल होती है।
(The process of population improvement is much simpler than hybrid breeding.)
2. प्रति वरण चक्र पीढ़ियों की संख्या (Number of Generations Per Selection Cycle):- पीढ़ियों की संख्या कम होने पर शीघ्र समष्टि सुधार होगा जबकि पीढ़ियों की संख्या अधिक होने पर धीमा समष्टि सुधार होगा।
(There will be an immediate population improvement when the number of generations are less, while there will be a slow plant population if the number of generations are more.)
3. चयन की उपलब्धि (Availability of Selection):-
4. विविधता का ह्रास (Deterioration of Variability):- वरण के दौरान समष्टि की विविधता में प्रति वरण चक्र कमी आती जाती है। अधिक कमी आए तो समष्टि सुधार शीघ्र होता है और कम वरण चक्र दोहराने पड़ते हैं। कम कमी आए तो समष्टि सुधार धीमी गति से होता है अधिक वरण चक्र दोहराने पड़ते हैं।
(During selection, the variability of the population decreases per cycle. When there is more decrease, the improvement of the population is fast and less number of selection cycles has to be repeated. When there is less decrease, the improvement of population is slow and more number of selection cycles have to be repeated.)
5. अनेक लक्षणों में सुधार (Improvement in Many Characters):- समष्टि सुधार में बहुत से लक्षणों में साथ – साथ सुधार होता है। अत: एक लक्षण में सुधार का दूसरे लक्षण पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
(In population improvement, many characters improve simultaneously. Therefore, improvement in one character should not affect the other.)
6. सुधार का उद्देश्य (Objective of Improvement):- सुधार की विधि का चुनाव उद्देश्य पर निर्भर करता है।
(The choice of method of improvement depends on the objective.)
वरण की विधियाँ (Modes of Selection):- समष्टि सुधार के लिए 2 प्रकार की वरण विधियों का उपयोग किया जाता है:-
(There are 2 types of selection methods used for population improvement:-)
1. समूह वरण (Mass Selection)
2. आवर्ती वरण (Recurrent Selection)
1. समूह वरण (Mass Selection):- इसके 4 रूपान्तरण हैं -
(It has 4 modifications -)
a. स्तरित वरण (Stratified Selection)
b. भुट्टे से पंक्ति विधि (Ear to Row Method)
c. रूपांतरित भुट्टे से पंक्ति विधि (Modified Ear to Row Method)
d. रूपांतरित तितर बितर वरण (Modified Disruptive Selection)
a. स्तरित वरण (Stratified Selection):-
इसे उप प्लॉट तंत्र (Sub Plot System) भी कहते हैं।
(It is also called the sub plot system.)
समूह वरण की असफलता के 2 मुख्य कारण हैं:-
(There are 2 main reasons for failure of mass selection:-)
i. वरित जनक पौधों पर वातावरण का प्रभाव
(Effect of environment on selected parent plants)
ii. पराग स्त्रोत पर नियंत्रण न होना
(No control on pollen source.)
उपरोक्त कमियों को दूर करने के लिए Gardner ने 1961 में 2 सुझाव दिये:-
(To overcome the above problems Gardner gave 2 suggestions in 1961: -)
i. समष्टि को अलगाव में उगाना (Grow the population in isolation):- इससे पराग स्त्रोत पर नियंत्रण रख सकते हैं।
(By this, the pollen source can be controlled.)
ii. ग्रिडिंग पुंज वरण करना (Griding mass selection):- इससे वातावरणीय प्रभाव को समाप्त कर सकते हैं।
ग्रिड में बांटते समय यह ध्यान रखते हैं कि एक ग्रिड में किसी प्रकार की मृदा विषमता तथा अन्य वातावरणीय विषमता न हो।
(This can eliminate environmental effects. While dividing into grids, it is important that there should not be any soil inequality and other environmental inequality in one grid.)
• प्रत्येक उप प्लॉट या ग्रिड से समान संख्या में पौधों का वरण कर लेते हैं। सभी वरित पौधों के बीजों को मिलाकर उसके तीन भाग कर लेते हैं:-
(Select equal number of plants from each sub-plot or grid . All seeds of selected plants are mixed and divided into three parts:-)
i. प्रथम भाग (First part):- अगले वर्ष अलगाव में उगाते हैं।
(The next year grow in isolation.)
ii. द्वितीय भाग (Second part):- मूल्यांकन करने के लिए उगाते हैं।
(Grow for evaluation.)
iii. तृतीय भाग (Third part):- सुरक्षित रख लेते हैं।
(Keep it safe.)
b. भुट्टे से पंक्ति विधि (Ear to Row Method):-
• इसे अर्ध सहोदर कुल वरण (Half Sib Family Selection) भी कहते हैं।
(It is also known as half sib family selection.)
• इस विधि का विकास Hopkins ने 1908 में किया था।
(This method was developed by Hopkins in 1908.)
• इस विधि का मक्के में बहुत अधिक उपयोग किया जाता है।
(This method is much used in maize.)
c. रूपांतरित भुट्टे से पंक्ति विधि (Modified Ear to Row Method):-
• यह विधि Lonquist ने 1964 में प्रस्तुत की थी।
(This method was introduced by Lonquist in 1964.)
• इसमें वरित पौधों की संतति की Performance का मूल्यांकन कई स्थानों पर किया जाता है तथा सभी स्थानों की औसत Performance के आधार पर पौधों का चयन करते हैं।
(In this, the performance of the progeny of the selected plants is evaluated at several places and selects the plants based on the average performance of all the places.)
d. रूपांतरित तितर बितर वरण (Modified Disruptive Selection):-
• यह विधि Lonquist ने 1972 में प्रस्तुत की थी।
(This method was introduced by Lonquist in 1972.)
• आधार समष्टि में से समान संख्या में बीज लेकर 5 विभिन्न स्थानों (वातावरणों) में समान संख्या में उगाया जाता है।
[The equal number of seeds are collected from the base population and grown in 5 different places (environments).]
• प्रत्येक स्थान पर उत्तम पौधों को छांटकर उनका बीज एकत्रित कर लेते हैं।
(At every place, the superior plants are selected and their seeds are collected.)
• अगले वर्ष प्रत्येक स्थान से समान संख्या में बीज लेकर क्रॉसित खण्ड में उगाते हैं। स्वतंत्र परागण होने देते हैं। इससे प्राप्त बीज उन्नत बीज पुंज (Improved Seed Bulk) कहलाता है।
[The next year equal number of seeds are collected from each place and grown in a crossed block. Allow open pollination. The seed obtained from this is called improved seed bulk.]
2. आवर्ती वरण (Recurrent Selection):- जब सभी संभव संयोजनों में संकरण कराकर, पुनरावर्तित उपज परीक्षण करके बार – बार वरण किया जाता है तो इसे आवर्ती वरण कहते हैं। यह विधि भुट्टे से पंक्ति विधि का रूपान्तरण है।
(When hybridization is done in all possible combinations and repetitive yield trials are performed, it is called recurrent selection. This method is the modification of Ear to Row method.)
स्त्रोत समष्टियाँ (Source Populations):- जिन समष्टियों से अंत:प्रजातों का पृथक्करण किया जाता है, स्त्रोत समष्टियाँ कहलाती हैं। सामान्यतया किसी समष्टि से उत्तम अंत: प्रजात प्राप्त करने की प्रायिकता, उस समष्टि में उपस्थित उत्कृष्ट जीन प्रारूपों की आवृति पर निर्भर होती है।
(The populations from which the inbreds are obtained are called source populations. Generally, the probability of obtaining a superior inbred from a population depends on the frequency of superior genotypes present in that population.)
4 प्रकार (4 types):-
a. सरल आवर्ती वरण (Simple Recurrent Selection)
b. GCA के लिए आवर्ती वरण (Recurrent Selection for GCA)
c. SCA के लिए आवर्ती वरण (Recurrent Selection for SCA)
d. व्युत्क्रम आवर्ती वरण (Reciprocal Recurrent Selection)