Deficiency Symptoms of Nutrients, Mineral Salt Absorption Mechanism
1. निष्क्रिय अवशोषण (Passive Absorption):- इसमें उपापचय ऊर्जा के व्यय की आवश्यकता नहीं होती है।
(It does not require expenditure of metabolic energy.)
a. सरल विसरण (Simple Diffusion):- जब खनिज लवणों की सांद्रता मूल कोशिकाओं के कोशिका रस की तुलना में बाहरी मृदा विलयन में अधिक होती है, तो खनिज लवण विसरण की सरल प्रक्रिया द्वारा सांद्रता प्रवणता के अनुसार अवशोषित होते हैं।
(When the concentration of mineral salts is higher in the outer solution than in the cell sap of the root cells, the mineral salts are absorbed according to the concentration gradient by simple process of diffusion.)
b. आयन विनिमय विधि (Ion Exchange Mechanism):- भित्ति की सतह या मूल कोशिकाओं की झिल्लियों पर अधिशोषित आयनों का बाहरी मृदा विलयन से समान आवेश के आयनों के साथ आदान-प्रदान किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, बाह्य मृदा विलयन के धनायन K + का मूल कोशिकाओं की सतह पर अधिशोषित H + आयन के साथ आदान-प्रदान हो सकता है। इसी प्रकार, ऋणायन का OH–आयन से आदान-प्रदान हो सकता है। आयन विनिमय की क्रियाविधि के बारे में दो सिद्धांत हैं:-
(The ions adsorbed on the surface of the walls or membranes of root cells may be exchanged with the ions of same sign from external solution. For example, the cation K+ of the external soil solution may be exchanged with H+ ion adsorbed on the surface of the root cells. Similarly, an anion may be exchanged with OH– ion. There are two theories regarding the mechanism of ion exchange:-)
i. कार्बोनिक अम्ल विनिमय वाद (Carbonic Acid Exchange Theory):- इस सिद्धांत के अनुसार, मूल कोशिकाओं के श्वसन के दौरान निकली CO2 कार्बोनिक अम्ल (H2CO3) बनाने के लिए जल के साथ जुड़ जाती है। मृदा विलयन में कार्बोनिक अम्ल H+ और ऋणायन HCO3– में विघटित हो जाता है। इन H+ आयनों का आदान-प्रदान मृदा कणों पर अधिशोषित ऋणायनों के लिए हो सकता है।
इस प्रकार मृदा कणों से मृदा विलयन में छोड़े गए धनायन, H+ आयनों के बदले बाइकार्बोनेट के साथ मूल कोशिकाओं पर अधिशोषित किए जा सकते हैं।
(According to this theory, the CO2 released during respiration of root cells combines with water to form carbonic acid (H2CO3). Carbonic acid dissociates into H+ and an anion HCO3– in soil solution. These H+ ions may be exchanged for cations adsorbed on clay particles.
The cations thus released into the soil solution from the clay particles, may be adsorbed on root cells in exchange for H+ ions or as ion pairs with bicarbonate.)
ii. सम्पर्क विनिमय वाद (Contact Exchange Theory):- इस सिद्धांत के अनुसार, मूल कोशिकाओं और मृदा कणों की सतह पर अधिशोषित आयनों को कसकर नहीं रखा जाता है, परन्तु ये अवकाश के छोटे आयतन के भीतर दोलन करते हैं। यदि मूल और मृदा कण एक दूसरे के निकट संपर्क में हों तो मृदा विलयन में घुले बिना मृदा कणों पर अधिशोषित आयनों का मूल सतह पर अधिशोषित आयनों के साथ आदान-प्रदान हो सकता है।
[According to this theory, the ions adsorbed on the surface of root cells and clay particles (or clay micelles) are not held tightly but oscillate within small volume of space. If the roots and clay particles are in close contact with each other, the ions adsorbed on clay particle may be exchanged with the ions adsorbed on root-surface directly without first being dissolved in soil solution.]
c. डोनेन साम्यावस्था वाद (Donnan Equilibrium Theory):-
(The membrane is selectively permeable in nature. Some are permeable to ions and some are impermeable.)
जिन आयनों के लिए झिल्ली पारगम्य होती है वे विसरण द्वारा कोशिका के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। इससे साम्यावस्था विचलित हो जाती है। साम्यावस्था को पुन: स्थापित करने के लिए ही फिर धनायनों व ऋणायनों का आदान - प्रदान होता है।
(The ions for which the membrane is permeable enter the cell by diffusion. This disturbs the equilibrium. To re-establish the equilibrium, there is an exchange of cations and anions again.)
d. समूह प्रवाह वाद (Mass Flow Theory):-
जल के प्रवाह के साथ ही आयनों का स्थानांतरण भी होता है। अत: मृदा से खनिज लवणों का अवशोषण जल में घुलनशील अवस्था में होता है। वाष्पोत्सर्जन की दर जितनी अधिक होती है, खनिज लवणों का अवशोषण उतना ही अधिक होता है।
(Ions are also transferred along with the flow of water. Therefore, the absorption of mineral salts from the soil occurs in a water-soluble state. Higher the rate of transpiration, greater is the absorption of mineral salts.)
2. सक्रिय अवशोषण (Active Absorption):-
Ø यह अक्सर देखा गया है कि पौधों में कोशिका रस में सांद्रता प्रवणता के विपरीत बड़ी मात्रा में खनिज लवण आयन जमा होते हैं। यह एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें श्वसन के माध्यम से उपापचय ऊर्जा का व्यय होता है।
(It has often been observed that the cell sap in plants accumulates large quantities of mineral salts ions
against the concentration gradient. It is an active process which involves the expenditure of metabolic energy through respiration.)
Ø इस दृष्टिकोण के पक्ष में निम्नलिखित प्रमाण हैं: -
(Following evidences favor this view:-)
i. निम्न तापमान, O2 की कमी, उपापचय अवरोधक आदि कारक जो पौधों में श्वसन जैसी उपापचय क्रियाओं को बाधित करते हैं, आयनों के संचय को भी रोकते हैं।
(The factors like low temp., deficiency of O2, metabolic inhibitors etc. which inhibit metabolic activities like respiration in plants also inhibit accumulation of ions.)
ii. जब पौधे को जल से लवण के विलयन में स्थानांतरित किया जाता है तो श्वसन की दर बढ़ जाती है। इसे लवणीय श्वसन कहते हैं।
Rate of respiration is increased when a plant is transferred from water to salt solution. It is called salt respiration).
a. वाहक अवधारणा (The Carrier Concept):- इस सिद्धांत के अनुसार प्लाज्मा झिल्ली स्वतंत्र आयनों के लिए अपारगम्य होती है। परन्तु इसमें उपस्थित कुछ यौगिक वाहक के रूप में कार्य करते हैं और आयनों के साथ मिलकर वाहक-आयन-जटिल बनाते हैं जो झिल्ली के पार जा सकते हैं। झिल्ली की आंतरिक सतह पर यह जटिल टूटकर कोशिका में आयनों को छोड़ देता है जबकि वाहक वापिस बाहरी सतह पर नए आयनों को लेने के लिए चला जाता है।
(According to this theory the plasma membrane is impermeable to free ions. But some compounds present in it acts as carrier and combines with ions to form carrier-ion-complex which can move across the membrane. On the inner surface of the membrane this complex breaks releasing ions into the cell while the carrier goes back to the outer surface to pick up fresh ions.)
b. साइटोक्रोम पम्प वाद (Cytochrome Pump Theory):-
Ø लुंडेगार्ध और बर्स्ट्रोम (1933) का मानना था कि श्वसन और ऋणायनों के अवशोषण के मध्य एक निश्चित संबंध होता है। इस प्रकार जब एक पौधे को जल से लवणीय विलयन में स्थानांतरित किया जाता है तो श्वसन की दर बढ़ जाती है। सामान्य श्वसन के सापेक्ष श्वसन की दर में वृद्धि को ऋणायन श्वसन या लवणीय श्वसन कहा जाता है।
(Lundegardh and Burstrom (1933) believed that there was a definite correlation between respiration and anion absorption. Thus when a plant is transferred from water to a salt solution the rate of respiration increases. This increase in rate of respiration over the normal respiration has been called as anion respiration or salt respiration.)
Ø लवणीय श्वसन में अवरोध और CO व सायनाइड्स (जो माइटोकॉन्ड्रिया में इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला के साइटोक्रोम ऑक्सीडेज के ज्ञात अवरोधक हैं) द्वारा ऋणायनों के अवशोषण में अवरोध के आधार पर बाद में लुंडेगार्द (1950, 54) ने साइटोक्रोम पंप वाद का प्रस्ताव करने के लिए नेतृत्व किया। यह निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है: -
[The inhibition of salt respiration and the accompanying absorption of anions by CO and cyanides (which are known inhibitors of cytochrome oxidase of electron transport chain in mitochondria), later on led Lundegardh (1950, 54) to propose cytochrome pump theory. This is based on the following assumptions:-]
i. धनायनों और ऋणायनों के अवशोषण की क्रियाविधि भिन्न होती है।
(The mechanism of anion and cation absorption is different.)
ii. सक्रिय प्रक्रिया द्वारा ऋणायनों को साइटोक्रोम श्रृंखला के माध्यम से अवशोषित किया जाता है।
(Anions are absorbed through cytochrome chain by an active process.)
iii. धनायन निष्क्रिय रूप से अवशोषित होते हैं।
(Cations are absorbed passively.)
Ø इस वाद के अनुसार (According to this theory):-
i. झिल्ली के भीतर की ओर डिहाइड्रोजिनेज अभिक्रियाएं प्रोटॉन (H+) और इलेक्ट्रॉनों (e–) को उत्पन्न करती हैं।
[ehydrogenase reactions on inner side of the membrane give rise to protons (H+) and electrons (e–).]
ii. इलेक्ट्रॉन, झिल्ली के बाहर साइटोक्रोम श्रृंखला पर गति करता है, ताकि साइटोक्रोम का Fe बाहरी सतह पर अपचयित (Fe++) और आंतरिक सतह पर ऑक्सीकृत (Fe+++) हो जाए।
[The electron travels over the cytochrome chain towards outside the membrane, so that the Fe of the cytochrome becomes reduced (Fe++) on the outer surface and oxidized (Fe+++) on the inner surface.]
iii. बाहरी सतह पर, अपचयित साइटोक्रोम ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकृत हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन (e-) को उत्सर्जित करता है व एक ऋणायन (A–) को ग्रहण कर लेता है।
[On the outer surface, the reduced cytochrome is oxidized by oxygen releasing the electron (e–) and taking an anion (A–).]
iv. इस प्रकार इलेक्ट्रॉन H+ व ऑक्सीजन के साथ मिलकर जल बनाता है।
(The electron thus released unites with H+ and oxygen to form water.)
v. ऋणायन (A–) साइटोक्रोम श्रृंखला के अंदर की ओर गति करता है।
[The anion (A–) travels over the cytochrome chain towards inside.]
vi. आंतरिक सतह पर ऑक्सीकृत साइटोक्रोम डिहाइड्रोजिनेज अभिक्रियाओं के माध्यम से उत्पादित इलेक्ट्रॉन लेकर अपचयित हो जाता है, और ऋणायन (A–) को छोड़ दिया जाता है।
[On the inner surface the oxidized cytochrome becomes reduced by taking an electron produced through the dehydrogenase reactions, and the anion (A–) is released.]
vii. ऋणायन के अवशोषण के परिणामस्वरूप, इस ऋणायन को संतुलित करने के लिए एक धनायन (M+) निष्क्रिय रूप से बाहर से अंदर की ओर जाता है।
[As a result of anion absorption, a cation (M+) moves passively from outside to inside to balance the anion.]
Ø उपरोक्त सिद्धांत के मुख्य दोष हैं (Main defects of the above theory are):-
i. यह केवल ऋणायनों के सक्रिय अवशोषण की व्याख्या करता है।
(It envisages active absorption of only anions.)
ii. यह आयनों के चयनात्मक अवशोषण की व्याख्या नहीं करता है।
(It does not explain selective uptake of ions.)
iii. यह पाया गया है कि धनायन भी श्वसन को प्रेरित करते हैं।
(It has been found that cations also stimulate respiration.)
c. प्रोटीन लेसिथिन वाद (Protein-Lecithin Theory):-
Ø 1956 में, बेनेट-क्लार्क ने सुझाव दिया कि क्योंकि कोशिका झिल्ली में मुख्य रूप से फॉस्फोलिपिड्स और प्रोटीन होते हैं और कुछ एंजाइम उन पर स्थित होते हैं, इसलिए वाहक, फॉस्फेटाइड से जुड़ा प्रोटीन हो सकता है जिसे लेसिथिन कहा जाता है।
(In 1956, Bennet-Clark suggested that because the cell membranes chiefly consist of phospholipids and proteins and certain enzymes seem to be located on them, the carrier could be a protein associated with the phosphatide called as lecithin.)
Ø उन्होंने अलग-अलग फॉस्फेटाइड्स की उपस्थिति का भी अंदाजा लगाया, जो कि धनायनों और ऋणायनों के ज्ञात प्रतिस्पर्धी समूहों की संख्या के अनुरूप होते हैं। (जो कोशिका के अंदर ले जाए जाएंगे)
[He also assumed the presence of different phosphatides to correspond with the number of known competitive groups of cations and anions (which will be taken inside the cell).]
Ø इस वाद के अनुसार (According to this theory):-
i. फॉस्फेटाइड में फॉस्फेट समूह को धनायनों को बांधने वाले सक्रिय केंद्र के रूप में और क्षारीय choline समूह को ऋणायन को बांधने केंद्र के रूप में माना जाता है।
(The phosphate group in the phosphatide is regarded as the active centre binding the cations, and the basic choline group as the anion binding center.)
ii. एंजाइम लेसिथिनेज द्वारा लेसिथिन के अपघटन द्वारा झिल्ली की आंतरिक सतह पर आयनों को मुक्त किया जाता है।
(The ions are liberated on the inner surface of the membrane by decomposition of the lecithin by the enzyme lecithinase.)
iii. फॉस्फेटाइडिक अम्ल और कोलीन से वाहक लेसिथिन का निर्माण एंजाइमों कोलीन एसिटाइलेज, कोलीन एस्टरेज़ और ATP की उपस्थिति में होता है। ATP ऊर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करता है।
(The regeneration of the carrier lecithin from phosphatidic acid and choline takes place in the presence of the enzymes choline acetylase and choline esterase and ATP. The ATP acts as a source of energy.)
खनिज आयनों की गति के परिपथ (Pathways of Mineral Ions Movement):-
एक बार जब खनिज लवण मूल की अधिचर्म कोशिकाओं के अंदर पहुँच जाते हैं, तो उनके आयनिक रूप एक कोशिका से दूसरे में जाते हैं: -
(Once mineral salts reaches inside the epidermal cells of the root, their ionic form move from one cell to another by:-)
i) एपोप्लास्टिक मार्ग (अर्थात, कोशिका की भित्तियों और अंतराकोशिकीय अवकाशों के माध्यम से)
[Apoplastic pathway (i.e., through cell walls and intercellular spaces)]
ii) ट्रांस झिल्ली मार्ग (अर्थात, झिल्ली को पार करके)
[Trans membrane pathway (i.e., by crossing the membranes)]
iii) सिमप्लास्टिक मार्ग (अर्थात, प्लाज्मोडेस्माटा के माध्यम से)
[Symplastic pathway (i.e., through plasmodesmata)]
अंत में जब खनिज आयन जाइलम वाहिकाओं और ट्रेकिड्स तक पहुंचते हैं, तो वहाँ से उन्हें रसारोहण के साथ-साथ प्ररोह के विभिन्न भागों में ले जाया जाता है।
Ultimately mineral salts reach to xylem vessels and tracheids, from where they are carried to different parts of the shoot along with ascent of sap.