Alternative Strategies for the Development of the Line and Cultivars: Haploid Inducer
UPDATED ON:- 01-01-2024
अंत:प्रजात वंशक्रमों व संकरों का विकास (Development of Inbred Lines and Hybrids):-
अंत:प्रजात वंशक्रम (Inbred Lines):-
• परिभाषा (Definition):- ऐसा वंशक्रम जिसके पौधे एक समान व 99.9 % समयुग्मनज होते हैं, अंत:प्रजात वंशक्रम कहलाता है। इनका उपयोग संकर बीज उत्पादन के लिए प्रजनन सामग्री के रूप में किया जाता है।
(A line whose plants are uniform and 99.9% homozygous, is called inbred line. They are used as breeding material for hybrid seed production.)
• स्त्रोत समष्टियां (Source populations):- अंत:प्रजातों का विकास विविधतापूर्ण समष्टियों से किया जाता है जिन्हें स्त्रोत समष्टियां कहते हैं। जैसे-
(The development of inbred lines is done through diverse populations, which are called source populations. like-)
i. मुक्त परागित किस्म (प्रथम चक्र अंत:प्रजात के लिए)
[Open pollinated variety (For first cycle inbred)]
ii. संश्लिष्ट किस्म (द्वितीय चक्र अंत:प्रजात के लिए)
[Synthetic Variety (For second cycle inbred)]
iii. एकल क्रॉस किस्म (त्रितीय चक्र अंत:प्रजात के लिए)
[Single cross variety (For third cycle inbred)]
iv. द्वि क्रॉस किस्म (चतुर्थक चक्र अंत:प्रजात के लिए)
[Double cross variety (For forth cycle inbred)]
अंत:प्रजात विकास की विधियाँ (Methods of Inbred Development):- अंत:प्रजातों का विकास 2 विधियों से किया जा सकता है-
(Development of inbred lines can be done by 2 methods-)
1. स्व क्रॉस विधि (Self cross method)
2. अगुणित पादप विधि (Haploid plant method)
1. स्व क्रॉस विधि (Self cross method):-
• इस विधि में विषमयुग्मनज समष्टियों में स्वपरागण कराकर अंत:प्रजात वंशक्रम विकसित किए जाते हैं।
(In this method, inbred lines are developed by self-pollinating the heterozygous populations.)
• इस उद्देश्य के लिए अनेक प्रजनन विधियों का उपयोग किया जा सकता है जैसे –
(Several breeding methods can be used for this purpose such as -)
i. वंशावली विधि (Pedigree method)
ii. पुंज विधि (Bulk method)
iii. SSD विधि (SSD method)
iv. प्रतीप संकरण विधि (Back Cross Method)
• जब एक मुक्त परागित किस्म से अंत:प्रजात का विकास करना होता है तो वंशावली विधि का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है, इसलिए इसे मानक विधि भी कहते हैं।
(The pedigree method is most commonly used when inbred line is developed from an open-pollinated variety, so it is also called the standard method.)
• मुक्त परागित फसलें (Open / Often pollinated crops):- अधिकांश फसलों में दोनों स्वपरागण व परपरागणविभिन्न अनुपातों में होते हैं। या तो स्वपरागण का प्रतिशत अधिक होता है और या फिर परपरागण का प्रतिशत अधिक होता है। ऐसी फसलों को मुक्त परागित फसलें कहते हैं।
(In most of the crops, both self-pollination and cross pollination occur in different proportions. Either the percentage of self-pollination is more or the percentage of cross pollination is more. Such crops are called open pollinated crops.)
• परपरागण (Cross pollination):- परागकणों का एक पौधे के पुष्प से दूसरे पौधे के पुष्प पर स्थानांतरण परपरागण कहलाता है।
(Transfer of pollens from one flower of a plant to another flower of the another plant, is called cross pollination.)
• इस विधि में कुल 4 चरण हैं:-
(There are total 4 steps in this method: -)
a. परपरागण को रोकना (Inhibition of cross pollination)
b. प्राकृतिक स्वपरागण (Natural self pollination)
c. कृत्रिम स्वपरागण (Artificial self pollination)
d. स्वक्रॉस की पुनरावर्ती (Repetition of selfing)
a. परपरागण को रोकना (Inhibition of cross pollination):- इस चरण में एक पौधे के पुष्पों को बटर पेपर या कपड़े की थैली से ढककर धागे की सहायता से पुष्पवृन्त के साथ बांध दिया जाता है।
(In this step, the flowers of a plant are covered with butter paper or cloth bag and tied with the pedicel with the help of thread.)
इस सुरक्षा से कोई भी अवांछित परागकण इन पुष्पों को परागित नहीं कर सकता।
(With this protection, no unwanted pollen can pollinate these flowers.)
b. प्राकृतिक स्वपरागण (Natural self pollination):-
Ø द्विलिंगी पुष्पों में 2 पुष्पीय अनुकूलताएं पायी हाती हैं –
(Bisexual flowers have 2 floral adaptations -)
i. समपरिपक्वता (Homomaturation):- इसमें दोनों पुंकेसर व अण्डप एक ही समय पर परिपक्व होते हैं ताकि स्वपरागण को बढ़ावा मिले। अत: इन पुष्पों में अपने आप ही स्वपरागण हो जाता है।
(In this, both stamens and carpels mature at the same time so this promote self-pollination. Therefore, self-pollination occurs in these flowers.)
ii. विषमपरिपक्वता (Heteromaturation):- इसमें दोनों पुंकेसर व अण्डप अलग अलग समय पर परिपक्व होते हैं ताकि परपरागण को बढ़ावा मिले। यदि पुंकेसर पहले परिपक्व होता है तो इसे पुंपूर्वता कहते हैं और यदि अण्डप पहले परिपक्व होता है तो इसे स्त्रीपूर्वता कहते हैं। अत: यहाँ स्वपरागण अपने आप नहीं होता है बल्कि हमें कृत्रिम रूप से कराना पड़ता है।
(In this, both stamens and carpels mature at different times so that cross-breeding is encouraged. If the stamens mature first, it is called protandry and if the carpels matures first, it is called protogyny. Hence here self-pollination does not occur naturally, but we have to do it artificially.)
Ø एकलिंगी पुष्प पौधों में 2 प्रकार से व्यवस्थित हो सकते हैं:-
(In plants, unisexual flowers can be arranged in two ways: -)
i. द्विलिंगाश्रीयता (Monoecism):- जब नर व मादा पुष्प दोनों एक ही पौधे पर उपस्थित होते हैं तो इसे द्विलिंगाश्रीयता कहते हैं। उदाहरण – मक्का, कुकुरबिट्स आदि। इस स्थिति में स्वपरागण कृत्रिम रूप से कराना पड़ता है।
(When both male and female flowers are present on the same plant, it is called monoecism. Examples - Maize, Cucurbits etc. In this situation self-pollination has to be done artificially.)
ii. एकलिंगाश्रीयता (Dioecism):- जब नर पुष्प नर पौधे पर व मादा पुष्प मादा पौधे पर उपस्थित होते हैं तो इसे एकलिंगाश्रीयता कहते हैं। उदाहरण – खजूर, भांग आदि। इस स्थिति में स्वपरागण कराना असंभव है।
(When the male flowers are present on the male plant and the female flowers are present on the female plant, it is called dioecism. Examples - dates, cannabis etc. In this situation it is impossible to do self-pollination.)
c. कृत्रिम स्वपरागण (Artificial self pollination):-
Ø विषमपरिपक्व द्विलिंगी पुष्पों व द्विलिंगाश्रीयता पुष्पों में स्वपरागण कृत्रिम रूप से कराना पड़ता है।
(Self-pollination has to be done artificially in hetero-mature bisexual flowers and monoecious flowers.)
Ø कृत्रिम परागण सुबह 7:30 से 10:00 बजे के मध्य किया जाता है।
(Artificial pollination is done between 7:30 am to 10:00 am.)
Ø पौधे के एक पुष्प से चिमटी व ब्रुश की सहायता से परागकणों को एकत्रित करते हैं।
(With the help of forceps and brush pollens are collected from a flower of a plant.)
Ø अब मादा पुष्प से थैली को हटाकर पुष्प को खोलते हैं और परागकण लगे ब्रुश को वर्तिकाग्र से स्पर्श कराते हैं। ऐसा करने से परागकण वर्तिकाग्र से चिपक जाते हैं।
(Now, after removing the bag from the female flower, open the flower and touch the brush with stigma. By doing this, pollen sticks to the stigma.)
Ø अब इस मादा पुष्प को तुरंत थैली से ढक देते हैं ताकि अवांछित परागकण द्वारा संदूषण न हो।
(Now cover the female flower immediately with a bag so that there is no contamination by unwanted pollens.)
d. स्वक्रॉस की पुनरावर्ती (Repetition of selfing):-
Ø 8 – 10 पीढ़ियों तक लगातार स्वपरागण कराते हैं।
(Done self-pollination continuously for 8 - 10 generations.)
Ø प्रत्येक पीढ़ी में ओजपूर्ण व रोगमुक्त पौधों का वरण किया जाता है।
(In each generation vigorous and disease free plants are selected.)
Ø पीढ़ी दर पीढ़ी समयुग्मनजता बढ़ती जाती है और विषमयुग्मनजता घटती जाती है।
(The homozygosity increases generation by generation and the heterozygosity decreases.)
Ø 10वीं पीढ़ी के पौधे 99.9 % समयग्मनज होते हैं। जिसे अंत:प्रजात वंशक्रम कहते हैं।
(The 10th generation plants are 99.9% homozygous. Which is called the inbred line.)
2. अगुणित पादप विधि (Haploid plant method):- इस विधि में 2 मुख्य चरण हैं –
(There are 2 main steps in this method -)
a. अगुणित पादप का उत्पादन (Production of haploid plant)
b. गुणसूत्रीय द्विगुणन (Chromosome doubling)
a. अगुणित पादप का उत्पादन (Production of haploid plant):- अगुणित पादप को 2 विधियों से विकसित किया जा सकता है –
(The haploid plant can be developed in 2 ways -)
i. परागकोष / परागकण संवर्धन (Anther / Pollen culture)
ii. अंतराजातीय संकरण (Inter-specific hybridization)
i. परागकोष / परागकण संवर्धन (Anther / Pollen culture):-
Ø अनेक फसलों में इस विधि से अगुणित पादप विकसित किए जाते हैं।
(In many crops haploid plants are developed by this method.)
Ø इस विधि में फसली पौधे के पुष्पों से परागकोषों या परागकणों को एकत्रित करते हैं और कृत्रिम माध्यम पर संवर्धित करते हैं।
(In this method, pollens or anthers are collected from the flowers of the crop plant and cultured on artificial medium.)
Ø संवर्धन में वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरणीय परिस्थितियाँ उपलब्ध कराते हैं जिससे अगुणित पादप विकसित हो जाते हैं।
(Provides favorable environmental conditions for growth in culture, causing haploid plants to develop.)
ii. अंतराजातीय संकरण (Inter-specific hybridization):-
Ø कुछ फसलों में इस विधि से अगुणित पौधे विकसित हो जाते है।
(In some crops, haploid plants are developed by this method.)
Ø दो जातियों के मध्य सकारण से दोनों जातियों के गुणसूत्र द्विगुणित जाइगोट में आ जाते हैं।
(The chromosomes of both the species enters into the diploid zygote by crossing between the two species.)
Ø जाइगोट में समसूत्री विभाजन होने से भ्रूण का निर्माण होता है।
(Zygote undergoes mitosis to develop into an embryo.)
Ø जाइगोट से भ्रूण के विकास के दौरान किसी एक जाति के गुणसूत्र विलुप्त हो जाते हैं जिससे परिपक्व भ्रूण की कोशिकाओं में केवल एक जाति के जीनोम बचे रेह जाते हैं। इस प्रकार भ्रूण अगुणित हो जाता है।
(During embryo development from the zygote, the chromosomes of one species are degenerated, leaving only the genome of another one species in the cells of the mature embryo. Thus the embryo becomes haploid.)
Ø इस अगुणित भ्रूण के कृत्रिम संवर्धन से अगुणित पौधा विकसित हो जाते हैं।
(By artificial culture of this haploid embryo, haploid plants develop.)
b. गुणसूत्रीय द्विगुणन (Chromosome doubling):-
Ø कोल्चीसीन रसायन को लीलिएसी कुल के एक पौधे Colchicum autumnale से प्राप्त किया जाता है।
(Colchicine chemical is obtained from Colchicum autumnale, a plant of the family Liliaceae.)
Ø अगुणित पौधों को इस कोल्चीसीन रसायन से उपचारित किया जाता है।
(The haploid plants are treated with this colchicine chemical.)
Ø कोशिका चक्र के दौरान S – phase में DNA replication से गुणसूत्रों की संख्या दोगुनी हो जाती है। कोल्चीसीन M – phase में तर्कु तंतुओं के निर्माण को रोक देता है जिससे कोशका चक्र M – phase में ही स्थायी रूप से रुक जाता है और कोशिका द्विगुणित हो जाती है।
(During the cell cycle, DNA replication in the S-phase doubles the number of chromosomes. Colchicine inhibits the formation of spindle fibers in the M-phase, causing the cell cycle to stop permanently in the M-phase itself and the cell to diploid.)
Ø इस प्रकार पौधे की सभी कोशिकाएं द्विगुणित हो जाती हैं।
(Thus all the cells of the plant become diploid.)
Ø इस प्रकार प्राप्त द्विगुणित पौधे 100 % समयुग्मनज होते हैं जिन्हें अंत:प्रजात वंशक्रम कहते हैं।
(The diploid plants thus obtained are 100% homozygous, which are called inbred line.)
संकर पौधों का विकास (Development of hybrid plants):- संकर पौधों का विकास 3 चरणों में किया जाता है-
(Hybrid plants are developed in 3 stages -)
1. स्वपरागण को रोकना (Prevention of self pollination)
2. संदूषण को रोकना (Prevention of contamination)
3. कृत्रिम परपरागण (Artificial cross pollination)
1. स्वपरागण को रोकना (Prevention of self pollination):- द्विलिंगी पुष्पों में स्वपरागण को रोकने के लिए निम्न विधियों का उपयोग कर सकते हैं –
(To prevent self-pollination in bisexual flowers, the following methods can be used -)
i. विपुंसन (Emasculation):- द्विलिंगी पुष्प के पुकेसरों को परिपक्व होने से पहले निकाल दिया जाता है अथवा परागकणों को नष्ट कर दिया जाता है।
(The stamens of the bisexual flower are removed before they mature or pollens are destroyed.)
ii. नर बंध्यता (Male sterility):- जब एक पौधे के परागकण मृत या निष्क्रिय होते हैं तो पौधे के इस गुण को नर बंध्यता कहते हैं। नर बंध्य वंशक्रम को मादा जनक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
(When the pollens of a plant are dead or inactive, this property of the plant is called male sterility. The male sterile line can be used as a female parent.)
iii. स्वअनिषेच्यता (Self incompatibility):- यह कुछ फसलों में पायी जाती है। परागकण स्वनिषेचन करने में असमर्थ होते हैं। अत: यहाँ स्वपरागण नहीं होता है।
(It is found in some crops. Pollens are unable to self-fertilize. Hence there is no self-pollination.)
2. संदूषण को रोकना (Prevention of contamination):- विदेशी परागकणों द्वारा संदूषण को रोकने के लिए निम्न विधियों का उपयोग कर सकते हैं -
(The following methods can be used to prevent contamination by foreign pollens -)
i. थैली लगाना (Bagging):- विपुंसन के तुरन्त बाद पुष्पों को कागज या कपड़े की थैली से ढक दिया जाता है।
(Immediately after emasculation, the flowers are covered with paper or cloth bags.)
ii. पृथक्करण (Isolation):- नर बंध्य व स्वअनिषेच्य वंशक्रमों में अन्य फसलों के प्लॉट से एक निश्चित पृथक्करण दूरी रखी जाती है।
(In the male sterile and self-incompatible lines, a certain isolation distance is kept from the plot of other crops.)
3. कृत्रिम परपरागण (Artificial cross pollination):-
Ø नर बंध्य व स्वअनिषेच्य वंशक्रमों में नर वंशक्रमों द्वारा मुक्त परागण होने देते हैं।
(Now allow open pollination by male lines in male sterile and self-incompatible lines.)
Ø विपुंसित पुष्पों में नर जनक पौधे से परागकण एकत्रित कर मादा जनक पौधे के पुष्पों को परागित किया जाता है।
(Now collect pollens from the male parent plant and pollinate the emasculated flowers of the female parent plant.)
Ø परिपक्वन के बाद संकर बीज प्राप्त कर लिए जाते हैं।
(After maturation, hybrid seeds are obtained.)