Varietal Identification through Grow Out Test and Electrophoresis, Molecular and Biochemical test
UPDATED ON:- 01-01-2024
ग्रो आउट परीक्षण व इलेक्ट्रोफोरेसिस तथा आण्विक व रासायनिक परीक्षणों द्वारा किस्म की पहचान (Varietal Identification through Grow Out Test and Electrophoresis, Molecular and Biochemical test):-
1. Grow Out Test (GOT):- इस परीक्षण में परीक्षण नमूने व मानक नमूने को साथ – साथ खेत में उगाया जाता है। बीज अंकुरण से लेकर सम्पूर्ण परिपक्व अवस्था तक सम्पूर्ण वृद्धि काल के दौरान दोनों के आकारिकीय लक्षणों की तुलना की जाती है। एक समान लक्षणों का प्रतिशत निकालकर आनुवंशिक शुद्धता की गणना करते हैं।
(In this test, test samples and standard samples are grown together in the field. The morphological characteristics of both are compared during the entire growth period from seed germination to the complete maturation stage. Genetic purity is calculated by finding the percentage of similar traits.)
· Criteria for GOT:-
· GOT के लिए प्रस्तुत नमूने का आकार (Size of submitted sample for GOT):-
· निरीक्षण (Observations):-
i. बीज आकारिकी (Seed Morphology):- लैब में Naked eyes या Hand Lens या SEM की सहायता से बीज की चौड़ाई, लंबाई, मोटाई, आकृति, भार, रंग आदि लक्षणों की तुलना की जाती है।
(By naked eyes or with the help of hand lens or SEM in the lab, the characteristics of seed as width, length, thickness, shape, weight, color etc. are compared.)
ii. पादप स्वभाव (Plant habit)
iii. पुष्पीय स्वभाव (Flowering habit)
iv. पुष्पीय लक्षण (Floral characters)
v. फलों के लक्षण (Floral characters)
2. Chemical Test:- इसमें पादपों के द्वितीयक यौगिकों का analysis किया जाता है। ये सरल रंग परीक्षण होते हैं।
(In this, secondary compounds of plants are analyzed. These are simple color tests.)
i. Phenol test:-
Ø गेहूँ में किया जाता है।
(It is used in wheat.)
Ø यह परीक्षण Walls के द्वारा 1965 में धान्य फसलों जैसे गेहूँ, धान, ज्वार आदि के लिए दिया गया था।
(This test was given by Walls in 1965 for cereal crops like wheat, rice, sorghum etc.)
Ø यह आसान, जल्दी से होने वाला व सुलभ परीक्षण है।
(This is a simple, quick and easy test.)
Ø किस्मों के विभेदन के लिए किया जाता है।
(Is used to distinguish crop varieties.)
Ø पिछले 50 वर्षों से इसका उपयोग किया जा रहा है।
(It has been used since last 50 years.)
Ø एंजाइम अभिक्रिया (Enzyme action):-
Ø इस विधि के द्वारा किस्मों के एक समूह को पहचाना जा सकता है। परन्तु एक एकल किस्म के बीजों को पहचानाना कठिन है।
(A group of varieties can be identified by this method. But it is difficult to identify a single seed variety.)
ii. NaOH test:-
Ø गेहूँ में किया जाता है।
(It is used in wheat.)
Ø यह Pyane के द्वारा 1988 में विकसित किया गया था।
(It was developed by Pyane in 1988.)
Ø यह सफेद व लाल बीजों वाली गेहूँ की किस्मों में विभेदन करता है।
(It distinguishes between white and red seeded wheat varieties.)
iii. KOH test:-
Ø धान में किया जाता है।
(It is used in rice.)
Ø यह Rosta के द्वारा 1975 में विकसित किया गया था।
(It was developed by Rosta in 1975.)
Ø जंगली धान Oryza sativa var. fatua के बीज लाल रंग के होते हैं। इसके कुछ बीज सफेद रंग के हो जाते हैं। यदि ये सफेद बीज सामान्य धान के सफेद बीजों से मिश्रित हो जाएँ तो इन्हें पहचानना कठिन हो जाता है। परन्तु KOH परीक्षण के द्वारा इन्हें पहचाना जा सकता है।
(The seeds of wild rice Oryza sativa var. fatua are red in color. Some of its seeds turn white. If these white seeds are mixed with normal rice white seeds, then it becomes difficult to identify them. But they can be identified by the KOH test.)
iv. FeSO4 test:-
Ø धान में किया जाता है।
(It is used in rice.)
Ø FeSO4 से क्रिया कर बीजों के हस्क पर निम्न तीनों में से किसी एक प्रकार का पैटर्न दिखाई दे सकता है –
(By reacting with FeSO4, any one of the following three types of patterns can appear on the seed husk -)
i. भूरे धब्बे (Brown spots)
ii. सलेटी धब्बे (Grey spots)
iii. सलेटी धारियाँ (Grey streaks)
v. KOH – Bleach test:-
Ø ज्वार में किया जाता है।
(It is used in jowar.)
Ø यह परीक्षण Payne व Koszykowski के द्वारा 1980 में विकसित किया गया था।
(The test was developed in 1980 by Payne and Koszykowski.)
Ø बीज चोल की आंतरिक परत Tegmen में Tannic अम्ल पाया जाता है जो काला अभिरंजन देती है। इसे सुनिश्चित करने के लिए यह परीक्षण किया जाता है।
[Tannic acid is found in tegmen (inner layer of seed coat) which gives black staining. This test is done to ensure this.]
Ø अब इन बीजों को जल से धो लेते हैं और फिल्टर पेपर पर फैलाकर सूखा लेते हैं।
(Now wash these seeds with water and spread them on filter paper for drying.)
vi. Peroxidase test:-
Ø सोयाबीन में किया जाता है।
(This test is used in soybean.)
Ø इस परीक्षण को Butteri व Buzzeli के द्वारा 1968 में विकसित किया गया था।
(The test was developed in 1968 by Butteri and Buzzeli.)
Ø इसका बीज चोल Peroxidase क्रिया प्रदर्शित करता है जो एक जीन के 2 युग्म विकल्पियों के द्वारा प्रदर्शित की जाती है।
(Its seed coat exhibits Peroxidase activity, which is controlled by 2 alleles of a gene.)
Ø यह परीक्षण Peroxidase एंजाइम की H2O2 से अभिक्रिया पर आधारित है।
(This test is based on the reaction of the peroxidase enzyme with H2O2.)
3. Electrophoresis method:- प्रोटीन प्रत्यक्ष जीन उत्पाद होती है। अत: बीज व अंकुर की प्रोटीन व एंजाइमों का परीक्षण किया जा सकता है। इसमें जब जैल में विधुत सप्लाई की जाती है तो आवेशित कणों की विपरीत ध्रुव की ओर गति होती है। आकार के अनुसार अणुओं की स्पीड अलग – अलग होती है जिससे वे एक – दूसरे से पृथक हो जाते हैं।
(Proteins are direct gene products. Therefore, the proteins and enzymes of seeds and seedlings can be tested. In this, when electricity is supplied in the gel, the charged particles move towards the opposite pole. The speed of the molecules varies according to the size by which they are separated from each other.)
बैंडिंग पैटर्न के आधार पर किस्मों को verify किया जाता है:-
(Varieties are verified on the basis of banding pattern: -)
i. By measuring Rm of bands
ii. Total number of bands
iii. Presence or absence of specific bands
iv. Intensity of bands
सामान्य प्रक्रिया (General process):-
Ø Selection of plant material
Ø Isolation of protein or isozymes
Ø Electrophoresis
Ø Staining of gel
4. Molecular markers:- ये DNA में उपस्थित विशिष्ट स्थान होते हैं जो एक किस्म के पौधों के लिए विशिष्ट होते हैं।
(These are specific locations present in DNA that are specific to a variety of plants.)
i. RAPD (Randomly Amplified Polymorphic DNA)
ii. SCAR (Sequence Characterized Amplified Region)
iii. SSR (Simple Sequence Repeats)
iv. STS (Sequence Tagged Sites)
इसमें पादप ऊत्तकों से DNA का निष्कर्षण करके PCR व Gel Electrophoresis द्वारा इन Markers का अध्ययन किया जाता है।
(These markers are studied by PCR and Gel Electrophoresis by extracting DNA from plant tissue.)