Micropropagation

Micropropagation (सूक्ष्म प्रवर्धन):-

1. General Introduction (सामान्य परिचय):-

·    Clonal Propagation (क्लोनीय प्रवर्धन):- The process of multiplication by producing genetically identical offspring of a plant by asexual reproduction is called clonal propagation.

(अलैंगिक जनन द्वारा एक पौधे की आनुवांशिक रूप से एक समान संततियाँ उत्पन्न करके गुणन करने की प्रक्रिया को क्लोनीय प्रवर्धन कहते हैं।)

·     Natural clonal propagation is more difficult, expensive, and unsuccessful.

(प्राकृतिक क्लोनीय प्रवर्धन अधिक कठिन, खर्चीला व असफल होता है।)

·    Micropropagation (सूक्ष्म प्रवर्धन):- The process of culturing the vegetative part of the plant as explant on culture medium under sterilized conditions is called micro propagation. That is, the artificial method of clonal propagation is called micro propagation.

(पादप के कायिक भाग को कर्तोतक के समान उपयोग करके निर्जमित परिस्थितियों में कृत्रिम माध्यम पर संवर्धन करने की प्रक्रिया को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते हैं। अर्थात क्लोनीय प्रवर्धन की कृत्रिम विधि को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते हैं।)

·    The term clone was first used by Weber.

(क्लोन शब्द का प्रयोग सबसे पहले Weber ने किया था।)

·     Very large number of minute vegetative shoots are produced from a plant in very little space and in a very short time in micro propagation.

(सूक्ष्म प्रवर्धन में बहुत कम जगह और बहुत कम समय में एक पौधे से बहुत अधिक संख्या में सूक्ष्म कायिक प्ररोह बना लिए जाते हैं।)

·     The use of tissue culture for micro-propagation started in 1960 by G. Morel. He used it for orchid propagation.

(सूक्ष्म प्रवर्धन के लिए ऊतक संवर्धन का उपयोग G. Morel ने 1960 में शुरू किया था। उसने ओर्किड प्रवर्धन के लिए इसका उपयोग किया था।)

2. Micro propagation Methods (सूक्ष्म प्रवर्धन विधियाँ):-

i. Multiplication by Shoot Apical Meristem

(प्ररोह शीर्षस्थ विभाज्योतक द्वारा गुणन)

ii. Multiplication by Adventitious Shoot

(अपस्थानिक प्ररोह द्वारा गुणन)

iii. Multiplication by Adventitious Embryo Formation

(अपस्थानिक भ्रूण निर्माण द्वारा गुणन)

iv. Multiplication by Callus Culture

(कैलस संवर्धन द्वारा गुणन)

3. Stages of Micro propagation (सूक्ष्म प्रवर्धन की अवस्थाएँ):- Micro propagation is divided into 5 stages -

(सूक्ष्म प्रवर्धन को 5 अवस्थाओं में विभाजित किया गया है –)

a. Stage - 0 (अवस्था – 0)

b. Stage - I (अवस्था – I)

c. Stage - II (अवस्था – II)

d. Stage - III (अवस्था – III)

e. Stage - IV (अवस्था – IV)

a. Stage - 0 (अवस्था – 0):- This is the initial stage of micro propagation in which stock plants are selected and grown under controlled conditions for about 3 months. Due to which the plant becomes completely healthy and vigorous.

(यह सूक्ष्म प्रवर्धन का प्रारम्भिक चरण है जिसमें स्टॉक पौधों का चयन करके लगभग 3 महीने के लिए नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया जाता है। जिससे पौधे पूर्ण रूप से स्वस्थ व ओजपूर्ण हो जाते हैं।)

b. Stage - I (अवस्था – I):-

·    In this stage, the explants are taken from a healthy plant and are established on the appropriate culture medium.

(इस अवस्था में स्वस्थ पौधे से कर्तोतक को लेकर उपयुक्त संवर्धन माध्यम पर स्थापित कर दिया जाता है।)

·    There are mainly 2 mediums suitable for micro propagation -

(सूक्ष्म प्रवर्धन के लिए मुख्यत: 2 माध्यम उपयुक्त होते हैं –)

i. MS medium (MS माध्यम)

ii. White medium (White माध्यम)

·    This stage consists of the following steps -

(इस अवस्था में निम्न चरण होते हैं –)

i. Isolation of Explant (कर्तोतक का पृथक्करण)

ii. Surface Sterilization (सतही निर्जमीकरण)

iii. Washing ( सफाई)

iv. Establishment of Explant on Appropriate Culture Medium.

(उपयुक्त संवर्धन माध्यम पर कर्तोतक की स्थापना)

·     At this stage, kinetin and NAA or IBA growth regulators are mixed in the medium to induce growth and development.

(इस अवस्था में माध्यम में Kinetin व NAA या IBA वृद्धि नियामक मिश्रित किए जाते हैं जो वृद्धि व विकास को प्रेरित करते हैं।)

c. Stage - II (अवस्था – II):-   In this stage, the main activity of micro propagation takes place. In this, there is growth of explant and formation of embryo occurs.

(इस अवस्था में सूक्ष्म प्रवर्धन की मुख्य क्रिया होती है। इसमें कर्तोतक की वृद्धि होती है तथा भ्रूण का निर्माण होता है।)

d. Stage - III (अवस्था – III):-

·     During development of embryo from explant, nutrients present in the medium are used, which further slows down the embryo's further development.

(कर्तोतक के भ्रूण में परिवर्तन के दौरान माध्यम में उपस्थित पोषक पदार्थों का उपयोग हो जाता है, जिससे भ्रूण का आगे का परिवर्धन धीमा हो जाता है।)

·     Therefore, in this stage we remove the embryo from the old medium and transfer it to the new medium so that the embryo can develop into shoots quickly. It is also called sub-culturing.

(इसलिए इस अवस्था में हम भ्रूण को पुराने माध्यम से निकालकर नए माध्यम में स्थानांतरित कर देते हैं ताकि भ्रूण शीघ्रता से प्ररोह में विकसित हो सके। इसे उप – संवर्धन भी कहते हैं।)

·     In this stage high amount of kinetin is added to the medium.

(इस अवस्था में माध्यम में Kinetin की उच्च मात्रा डालते हैं।)

·     The temperature is kept at 24 - 26 ° C and the intensity of light is kept low.

(तापमान 24 – 26°C रखा जाता है तथा प्रकाश की तीव्रता कम राखी जाती है।)

·      In the new medium, the embryo develops quickly in shoots, forming plantlets.

(नए माध्यम में भ्रूण का शीघ्रता से प्ररोह में विकास हो जाता है जिससे प्लांटलेट्स बन जाते हैं।)

e. Stage - IV (अवस्था – IV):-

·     In this stage we establish the plantlets in the soil for further development.

(इस अवस्था में हम प्लांटलेट्स को आगे के परिवर्धन के लिए मृदा में स्थापित करते हैं।)

·     We transfer the plantlets from the lab environment to the greenhouse environment. Where they are hardened.

(हम प्लांटलेट्स को लैब के वातावरण से निकालकर ग्रीन हाउस के वातावरण में स्थानांतरित करते हैं। जहां इनकी हार्डनिंग की जाती है।)

4. Advantages (लाभ):-

·     This is an alternative method of vegetative propagation.

(कायिक प्रवर्धन की एकांतरित विधि है।)

·     This is fast method. A large number of plants can be developed in a small space and least time.

(तीव्र विधि है। कम समय में कम जगह पर बहुत अधिक संख्या में पौधे विकसित किए जा सकते हैं।)

·     The shoot multiplication has a short cycle of 2 - 6 weeks and there is a logarithmic increase in the number of shoots in each cycle.

(प्ररोह गुणन का 2 – 6 सप्ताहों का एक छोटा चक्र होता है तथा प्रत्येक चक्र में प्ररोहों की संख्या में लघुगणकीय वृद्धि होती है।)

·     It is more beneficial in plants producing bulbs, tubers or corms because small bulbs, tubers or corms remain available throughout the year for plant multiplication.

(बल्ब, कन्द या घनकन्द उत्पादित पौधों में यह अधिक लाभकारी है क्योंकि छोटे बल्ब, कन्द या घनकन्द पादप गुणन के लिए सम्पूर्ण वर्ष उपलब्ध रहते हैं।)

·     Small sized propagules are more beneficial because they occupy less space in storage and transport.

(छोटे आकार के प्रवर्ध अधिक लाभकारी होते हैं क्योंकि भंडारण व परिवहन में यह कम जगह घेरते हैं।)

·     Micro-propagation can be maintained in a soil-free environment, which helps in storing them on a large scale.

(सूक्ष्म प्रवर्धों का अनुरक्षण मृदा रहित वातावरण में किया जा सकता है जो बड़े स्तर पर इनके भंडारण में सहायता करता है।)

·     The germplasm of stock plants can be maintained for many years.

(स्टॉक पौधों के जननद्रव्य को अनेक वर्षों तक अनुरक्षित किया जा सकता है।)

·      Disease-free plants can be produced.

(रोग मुक्त पौधों का उत्पादन किया जा सकता है।)

·     Dioecious plants (एकलिंगाश्रयी पौधे):- Their seed progenies are 50% male and 50% female. Desired offspring (male or female) can be produced by micro propagation.

(इनकी बीज संततियाँ 50% नर व 50% मादा होती हैं। सूक्ष्म प्रवर्धन से वांछित संततियाँ (नर या मादा) उत्पन्न की जा सकती हैं।)

·     Commercial nurseries require minimal space for micro propagation. Thousands of plantlets can be maintained in culture tubes. It is useful in maintaining horticultural species.

(वाणिज्यिक नर्सरियों में सूक्ष्म प्रवर्धन के लिए कम से कम स्थान की आवश्यकता होती है। संवर्धन ट्यूब्स में हजारों प्लांटलेट्स को अनुरक्षित किया जा सकता है। यह बागवानी जातियों के अनुरक्षण में उपयोगी है।)

·     This method is more useful in slow growth plants. Seeds in such plants are produced after many years. Seeds are only propagules in them. The difficulty in the availability of propagules can be overcome by the use of this method.

(धीमी वृद्धि वाले पौधों में यह विधि अधिक उपयोगी है। ऐसे पौधों में बीज कई वर्षों के पश्चात उत्पन्न होते हैं। इनमें बीज ही केवल प्रवर्ध होते हैं।इस विधि के उपयोग से प्रवर्धों की उपलब्धता में कठिनाई को दूर किया जा सकता है।)

·     It is not always possible to produce 100% identical offspring from seed production. This is possible through micro propagation.

(बीज उत्पादन से 100% एकसमान संतति उत्पन्न करना हमेशा संभव नहीं है। सूक्ष्म प्रवर्धन के द्वारा यह संभव है।)

·     New tissue material developed by recombinant DNA technology or haploid culture or somatic hybridization can be multiplied by micro-propagation.

(पुनर्योजी DNA तकनीक या अगुणित संवर्धन या कायिक संकरण द्वारा उत्पन्न नई ऊतक सामग्री का सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा गुणन किया जा सकता है।)